प्रश्न (1) - मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति पर पर्यावरण क्षति को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर - मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति पर पर्यावरण क्षति -
मानवीय आवश्यकताएँ | पर्यावरणीय स्त्रोत एवं मानवीय क्रियाएँ | पर्यावरणीय परिवर्तन से उपजी समस्याएँ |
---|---|---|
(1) भोज्यपदार्थ | (1) पौधों से प्राप्त होने वाले उत्पाद, अनाज, सब्जियों, फल आदि। जन्तुओं से प्राप्त होने वाले उत्पाद दूध- अण्डा, मांस, मछली, शहद आदि। |
(1) कृषि के लिए वनों की कटाई से वन क्षेत्रफल में कमी। (2) पशु-पक्षियों की संख्या में कमी। |
(2) आवास एवं ईंधन | (4) लोहा, खनिज, भूमि, जलाऊ एवं इमारती लकड़ी। (2) क्रांकीट, सीमेन्ट, रेत। |
(1) वृक्षों की कटाई। (2) जल चक्र प्रभावित। (3) भूमि खनन ने अपरदन तथा उपजाऊ परत का नष्ट करना। |
अन्य आवश्यकताएँ | (1) हैंडपम्प, नलकूप, कुएँ खुदवाए। (2) उद्योगों की स्थापना के लिए जंगल व चट्टानों को समाप्त किया। (3) ऊर्जा स्रोत की प्राप्ति के लिए भूमिगत तेल एवं खनिज की खुदाई की गई। |
(1) भूमिगत जल स्तर में कमी होना। (2) उद्योगों की स्थापना से मिट्टी के उद्यापन में कमी होना। (3) वायु जल एवं भूमि का प्रदूषित होना |
प्रश्न (2) - वातावरण के प्रति जीव-जन्तुओं का सामन्जस्य (अनुकूलन) को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर - वातावरण के प्रति जीव जंतुओं का सामन्जस्य अनुकूलन) - मरुस्थलीय स्थानों पर ऊष्ण जलवायु के कारण पानी की कमी होती है और वहाँ वास करने वाले जीव जैसे ऊँट में लम्बे समय तक पानी संग्रहित करने की क्षमता रहती है। इसी तरह पौधों तो कैक्टस आदि की पत्तियाँ काँटों में रुपान्तरित हो जाती है, जिससे पानी वाष्प बनकर न उड़ सके।
टीप - कई पेड़-पौधे एवं जन्तुओं ही प्रजातियाँ ऐसी हैं जो प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ सामन्जस्य स्थापित नहीं कर सकीं और वे विलुप्त हो गई। जैसे डायनासोर आदि।
प्रश्न (3) - अनुकूलन क्या हैं?
उत्तर - प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रति जीवन जीने के लिए जीवों में प्राकृतिक रूप से होने वाले शारीरिक बदलाव ही अनुकूलन कहलाते हैं। मौसम की स्थिति के अनुसार आवास की दशाएँ बदलती है, जैसे तेज धूप के कारण मरुस्थलीय स्थानों पर पानी की कमी रहना, बालू मिट्टी उपलब्ध रहना। इसी प्रकार ठंडे स्थानों पर तेज ठंड रहना व वृद्धि के लिए सूर्य का प्रकाश उपलब्ध न होना तथा बर्फ का जमे रहना आदि विपरीत दशायें इन स्थानों के पौधों और जन्तुओं को प्राप्त होती है, जिनमें स्वयं को जीवित रखने के लिए पे अनुकूलित होते है।
प्रश्न (4) - मरुस्थलीय स्थल किसे कहते हैं?
उत्तर - मरुस्थलीय स्थल - ये तेज़ गर्मी वाले सक्षेत्रों में पाये जाते हैं जिनमें मौसम शुष्क रहता है और गरम हवायें चलती हैं। इन स्थानों पर पानी की सदैव स्थानों कमी रहती हैं। ऐसे स्थान मरुस्थलीय स्थल कहलाते हैं।
प्रश्न (5) - मरुस्थलीय पौधों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - मरुस्थलीय पौधों की विशेषताएँ हैं -
इन स्थानों पर साधारण रूप से वे पेड़ नहीं होते, जिनमसे इमारती लकड़ी प्राप्त का जा सके। यहाँ छाँटेदार पेड़-पौधे होते है तथा जहाँ कहीं भी पेड़ होते है, उनका जड़े भूमि में गहरे तक जाकर नमी प्राप्त करता है। छोटी जड़ वाले पौधे ओस तथा आकस्मिक वर्षा को तुरन्त सोखकर जीवित रहते हैं। इन पौधों में निम्नलिखित अनुकूलन पाए जाते हैं।
1. पत्ते छोटे होते है, जिससे प्रस्वेदन के लिए घरातल छोटा रहता है।
2. कई पौधों में पत्ते काँटों मे बदल जाते हैं और तना हरा मांसल पतीनुमा रहता है। जिनमें पानी और लवण पदार्थ संग्रहित रहते हैं, जैसे - कैक्टस।
3. इन पौधों की पत्तियों में स्टोमेटा प्राय: बन्द रहते है। जिससे वाष्पीकरण से पानी को बचाया जा सके।
प्रश्न (6) - मरुस्थलीय जनुओं को विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - मरुस्थलीय जंतुओं की विशेषताएँ निम्न हैं।
रेगिस्तान जैसी जगहों पर पाए जाने वाले जन्तुओं में लम्बे समय तक पानी, भोजन संग्रहित करने के लिए अनुकूलन पाए जाते हैं।
1. ऊँट के पैर गद्देदार होते हैं, जिससे रेत में धँसते नहीं हैं इसलिए इसे रेगिस्तान का जहाज कहते हैं।
2. ऊँट की पीठ पर कुबड़नुमा उभार होता है, जिसमें चर्बी जमा होती है। भोजन न मिलने पर यही चर्बी उसे ऊर्जा प्रदान करती है।
3. इसकी त्वचा मोटी होती है जो पूरी गर्मी से बचाकर वाष्पीकरण को रोकती हैं।
4. आँखों पर घने बालों के रूप में पलकें होती हैं, जो रेत भरी हवाओं से रक्षा करती हैं।
प्रश्न (7) - शीत जलवायु के पौधों की विशेषताएँ लिखिए?
उत्तर - शीत जलवायु के पौधों का विशेषताएँ निम्न हैं -
ये ठंडे स्थानों पर पाये जाते हैं, जहाँ बर्फ जमी रहती है। यहाँ पेड़-पौधे शंकु आकार के होते है, जिनकी पत्तियाँ लम्बी पतली और नुकीली होती है। जिससे उन पर बर्फ नहीं जम पाती। इन पौधों में निम्नांकित अनुकुलन पाये जाते हैं।
1. पौधों का आकार छोटा होता हैं।
2. पत्तियाँ लम्बी और नुकीली होती हैं।
3. सूर्य के कम प्रकाश में भी भोजन बनाने के लिए अनुकूलित होते हैं।
प्रश्न (8) - बर्फीले प्रदेशों के जन्तुओं की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - बर्फीले प्रदेशों के जन्तुओं को विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं -
(1) इनका शरीर लम्बे बालों से ढँका होता है जो ठण्ड से बचाता हैं।
(2) आँख और कान पर भी घने बाल होते हैं जो धूल भरी हवाओं में सुरक्षित रखते हैं।
(3) पूँछ छोटी होती है।
प्रश्न (9) - बरसाती क्षेत्रों को विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - बरसाती क्षेत्रों की विशेषताएँ हैं -
ये कम सूर्य प्रकाश और भारी वर्षा के क्षेत्र होते हैं, जिनमें सदाबहार पेड़-पौधे लगते हैं।
(1) पौधे के पत्ते चौड़े लम्बे आकार के विकसित होते हैं ताकि कम, धूप पौधों का विकास हो सकें।
(2) इन पौधों की पत्तियों के धरातल गहरे लाल रंग के हो जाते हैं, क्योंकि लाल रंग-हरे रंग का अपेक्षा अधिक प्रकाश ग्रहण करता है। इसके अतरिक्त तालाब, नदी पोखर आदि में भी जलीय पौधे तथा जीव-जन्तु अपने को पानी में रहने के लिए अनुकूलित कर लेते हैं।
प्रश्न (10) - जलीय जन्तुओं के अनुकूलन के बारे समझाइए?
उत्तर - जलीय जन्तुमों के अनुकूलन को निम्न प्रकार से समझाया गया है -
मछली का शरीर नौकाकार होने से उसे पानी में गति करने में मदद मिलती है और श्वसन के लिए इनमें गलफड़े होते हैं, जो पानी में घुली हुई ऑक्सीजन ही ग्रहण कर सकते हैं। पानी में रहने के लिए मछली की आँखों पर पलकें नहीं होती एक पारदर्शक झिल्ली होती है, जो पानी के अन्दर आँखों को सुरक्षा करती हैं।
प्रश्न (11)- जलीय पौधों में अनुकूलन को समझाइए।
या
कमल का पौधा पानी पर क्यों तैरता हैं?
उत्तर - जलीय पौधों, में अनुकूलन निम्न प्रकार है-
जलीय पौधे जैसे कमल के तने में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं, जिनमें हवा भरी होती हैं। जिसके कारण पौधे हल्के होकर पानी तैरते हैं। पौधों की चपटी पत्तियों तथा तने पर मोम जैसी चिकनी परत चढ़ी होती है जिससे पानी पर तैरने बाद भी पत्तियाँ सड़ती नहीं हैं।
प्रश्न (12) - मानव में अपने वातावरण के अनुकूलन को समझाइए?
उत्तर - मानव मे अपने वातावरण के प्रति अनुकूलन मानव शरीर में भी वातावरण के प्रति संवेदनाएँ होती हैं जो उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रखती हैं।
जैसे - तेज सूर्य के प्रकाश से बचने के लिए आँखो को पुतलियों का सिकुड़ना, तेज गर्मी के कारण शरीर का तापक्रम सामान्य बनाए रखने और त्वचा के नीचे एकत्रित हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने के लिए शरीर से पसीना निकलता है। इसके अतरिक्त बर्फीले स्थानों के रहवासियों की आँखे और कद छोटा होता है परन्तु शरीर फुर्तीला होता है जो पहाड़ों के ऊपर चढ़ने और उतरने के लिए अनुकूलित रहता है।
टीप - (1) ऊँट रेगिस्तान में माल लाने, ले जाने काम करते हैं। उसी तरह, रेनडियर भी बर्फीले स्थानों पर माल ढोने का काम करते हैं।
(2) ऊँट का दूध पौष्टिक तो होता है, किन्तु इससे दही नहीं जमाया जा सकता।
प्रश्न (13) - मनुष्य के क्रियाकलापों से समुद्रीय जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव समझाइए?
उत्तर - मनुष्य के क्रियाकलापों से समुद्रीय जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव -
(1) खाद्यान्न एवं औषधीय पदार्थों का दोहन -
खाद्यान्न एवं औषधाय पदार्थों का दोहन से औद्योगिक स्तर पर समुद्री जीवों का दोहन, मछली मारना, सीप, शंख आदि को पकड़ने के कारण समुद्री पारिस्थितिकीय संतुलन बिगड़ रहा है।
(2) यातायात के साधनों का विकास - यातायात के साधनों का विकास से यातायात के साधनों से रिसने वाला ईंधन हुई समुद्री जीवों की मृत्यु का कारण बनता है। दुर्घटनाग्रस्त तेल-वाहक पोत का ईंधन और कच्चा तेल समुद्र के तल पर फैलने से बड़ी मात्रा में समुद्री जीव और वनस्पति नष्ट हो जाते हैं।
(3) समुद्री क्षेत्रों में स्थित तेल का दोहन - समुद्र में स्थित तेल कुओं से कच्चा तेल निकाला जाता है। जैसे अरब- सागर में कई तेल उत्पादक क्षेत्र है। ऐसे तेल क्षेत्रों मे दुर्घटना में, भारी मात्रा में तेल का रिसाव होता है। जो समुद्री जीवन को हानि पहुँचाता है।
(4) औद्योगिक कचरे का निस्तारण - औद्योगिक कचरे का निस्तारण से औद्योगिक अपशिष्टों में उपस्थित विषैले रसायन सिर्फ उन अनेक समुद्री जीवों और वनस्पति के नष्ट होने का कारण बनते हैं बल्कि इन रसायनों द्वारा संक्रमित समुद्री जीव को अपने भोजन के रूप में प्रयुक्त करने से मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। यह संक्रमण पूरा खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करता है। समुद्र में फेंका जाने वाला प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक पक्षियों एक लाख समुद्री स्तनधारी जीवों व अनगिनत मछलियों को अपना शिकार बनाता है।
प्रश्न (14) - जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरणीय दुष्परिणाम क्या हैं?
उत्तर - जनसंख्या वृद्धि और पर्यावरणीय दुष्परिणाम निम्न हैं -
(1) वृक्षों से युक्त वनों को काटकर कृषि योग्य भूमि तैयार की जाती है।
(2) पेड़ काटकर रहने के लिए घर बनाये तथा ईंधन के लिए लकड़ी का प्रयोग करने से पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता है।
(3) भूमि का खनन करके धातुएँ प्राप्त की और उन धातुओं से यन्त्र बनाये। कई तरह के उद्योगों की स्थापना की।
(4) उद्योगों को चलाने के लिए ईंधन का आवश्यकता हुई तब अधिक गहराई जमीन को खोदकर कोयला और पेट्रोलियम जैसे पदार्थ निकाले जाने से पृथ्वी में असंतुलन हो गया।
(5) जनसंख्या में तीव्रता से वृद्धि होने के कारण खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग होने लगा जिनसे तीव्र उत्पादन तो हुआ, परन्तु भूमि बंजर होने लगी और इन खाधान्न के प्रयोग करने से मानव जीवन में कई बीमारियाँ फैलने लगी।
(6) जनसंख्या वृद्धि होने से सिंचाई, पीने के पानी की आवश्यकता बढ़ी जिससे कारण दैनिक कार्यों को पूर्ति लिए नलकूप, हैंडपम्प, खुदवाकर भूमिगत जल के दोहन से पूरा किया जाने लगा।
(7) बाँध और नहर बनाने के लिए, नदियों का रुख मोड़ दिया गया इससे प्राकृति व्यवस्थाएँ चरमरा गई।
(8) असंतुलन की स्थिति निर्मित होने लगी बड़े बाँधों के निर्माण से धरती पर बाढ़ और भूकम्प के खतरे बढ़ रहे हैं।
(9) जनसंख्या के साथ सुविधाओं के बढ़ाने तथा वृक्षों की कमी होने से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ गई, परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि हुई जिससे पहाड़ों की बर्फ पिघलने लगी।
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1. पर्यावरण और इसके घटक- जल, मिट्टी, खनिज हरित गृह प्रभाव
2. पर्यावरणीय तथ्य- भौतिक, जैविक एवं सामाजिक पर्यावरण
3. देशी और विदेशी फल एवं सब्जियाँ
4. हमारा पर्यावरण - सामाजिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण, जैविक एवं अजैविक घटक, प्रदूषण कारक एवं ग्लोबल वार्मिंग
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
edudurga.com
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